हमारे गौरवशाली संस्कृति में ब्रह्मांड के हरेक पिंड जो किसी न किसी रूप में हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं, श्रद्धा अर्पित करने की सदियों पुरानी परंपरा रही है जिसे एक पर्व अथवा उत्सव का आकार दे दिया गया है। प्रत्येक भारतीय त्योहार हमारे श्रेष्ठतम जीवन शैली के प्रतीक है। छठ पर्व (Chhath Puja) की वैश्विक प्रसिद्धि इस पर्व की महत्ता और व्यापकता को सिद्ध करते हैं। यह पर्व मानवता के संपूर्ण समुदायों का उत्सव है जिनमें हमारे जीवन दर्शन की जड़ें समाहित है। उर्जा, प्रकाश और जल के विविध स्रोत ही जीवन के अस्तित्व को इस पृथ्वी पर संभव बनाते हैं। इन सभी प्रकृति प्रदत्त उपहारों के लिए नतमस्तक होने का पर्व है छठ। महज एक त्योहार मानना इसके संकीर्ण बोध हैं ! वास्तव में इसमें सन्निहित संदेश बड़े मानवीय ,उदात्त और व्यापक हैं।
मानवता की नैसर्गिक व्याख्या से परिपूर्ण हरेक भारतीय त्योहार अपने आप में अनूठा और प्राकृतिक है ! एकमात्र त्योहार जो सामंजस्य सम्पूर्णता और श्रेष्ठता की मिसाल है तो केवल ‘छठ’।
लोक आस्था का पर्व छठ पूजा की एक तस्वीरहम भारतीयों का हरेक त्योहार किसी ईश्वरीय पौराणिक घटना , मनुष्यता पर आई संकट का निवारण करने से जुड़ा है। अनाचारों पर विजय ही इसके मूल में है। यह त्योहार भी हमें प्राकृतिक वरदानों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है। समाज के सभी वर्गों के साथ भेदभाव रहित आचरण की सीख देता आया है।
हम अस्तिक अन्य त्योहारों में जिन देवताओं की पूजा करते हैं उनकी छवि अपने अंतःकरण में स्थापित करते हैं । शास्त्रों में वर्णित अनगिनत देवी देवताओं को हमने नहीं देखा उनके देवत्व की कहानियां भर सुनी है।लेकिन यहां हमें उनके देवत्व को स्वीकृति के लिए किसी पौराणिक प्रमाण की आवश्यकता नहीं। वो हमारे समक्ष हैं उदय होकर और अस्त होकर भी। हमें आपकी पूर्णता और अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए किसी तर्क, प्रमाण या शास्त्र की आवश्यकता नहीं। हमारी पृथ्वी पर जो भी जीवन है सौंदर्य है वह आपसे है।आप न होते तो न यह पृथ्वी का अपना सौंदर्य संभव था न इसमें असंख्य रुपों में मौजूद जीवन और न इस जीवन के बहुरंगी रिश्ते। चांद का सौन्दर्य और शीतलता भी आपकी ही देन है। आपके बिना इस धरा पर जीवन के अस्तित्व की कोई कल्पना नहीं। आप सर्वत्र हैं आपसे ही सर्वस्व है।
मानव मूल्यों की सीख देता यह पर्व
सदियों से मानव मूल्यों की सीख देता यह पर्व श्रेष्ठता, सम्पूर्णता और समरसता के दर्शन को समेटे हुए है। समाज के सभी वर्गों के कर्मों की उपादेयता , जल के विभिन्न निकटस्थ स्रोतों की सफाई, प्रत्येक आवास, गली एवं मुहल्लों का सौंदर्यीकरण, प्राकृतिक वस्तुओं यथा सूप, डाली, ठेंकुआ, चावल, गेहूं, गोबर,घी की अनिवार्यता हमें हमारे प्राचीन सभ्यता और अतीत की स्मृति करवाते हैं जब विज्ञान एवं आधुनिक खोजों के बगैर भी स्वच्छ एवं सुंदर जीवन की कल्पना की जा सकती थी और यह आज भी संभव है। विज्ञान ने हमें सब कुछ दिया लेकिन बदले में मनुष्यता छीन ली है।
यह पर्व हमें मनुष्य बनने को भी कहता आया है । हरेक जाति, वर्ग कुंभकार के मिट्टी के बर्तन, बढई के सांचे, भील बिरहोर निर्मित सूप, डाली, गौ माता के दुग्ध, गोबर ,घी की नितांत आवश्यकता हमें गोधन, प्रकृति और समाज के निचले पायदान के लोगों की महत्ता को अंगीकार करने की सीख भी देता है।
‘छठ’ मात्र एक पर्व नहीं ….
यह तो जड़ है, परंपरा है हमारे टूट चुके, खोखले हुए पारिवारिक रिश्तों एवं सम्बन्धों के जड़ों की मजबूती एवं मरम्मत का। कुंजी है मानव और प्रकृति के सह -आस्तित्व का बोध कराने का।
बहुत गहरे निहितार्थ हैं इस पर्व की। सामाजिक सरोकार, परस्पर सहयोग और समन्वय तथा प्रकृति व मानव के सहसम्बन्धों को दर्शाने वाला यह पर्व अपने आप में अनूठा है !
हम सभी एकाकी होकर ,स्वयं में सिमटकर दीवाली, दशहरा व अन्य त्योहार मना लेते हैं पर एक छठ ही तो है जो अपने घर-आँगन की याद दिलाता है ! अन्य त्योहारों में बाहर रहना उतना नहीं अखरता जितना कि छठ में । तेजी से बदलती दुनियॉं में अगर कुछ नहीं बदला तो एकमात्र पर्व ‘छठ’, जो कि सैकड़ों सालों से अपने नियमों एवं परंपराओं से बंधा अटल एवं अक्षुण्ण है। यही तो गहराई है इस महापर्व की तभी तो इसे ‘लोक आस्था का महापर्व’ भी कहा गया है। यही मौलिकता है इसकी जो परंपरा व नियमों से बंधा सामाजिकता का अहसास सदियों से दिलाता रहा है। आधुनिकता की आभासी दुनियॉं के चकाचौंध से दूर अपने पुरखों की माटी व संस्कृति के साथ मानव से मानव को जोड़ना सिखाता है। अपने घर -परिवार से सैकड़ों हजारों मील दूर रह रहे लोगों को घर खींच लाता है।
अपने बीते बचपन की यादों को समेटे अपने आंगन ,खलिहान, घर -परिवार, नदी , तालाब तक। …
साभार: मनोरंजन शाही
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